(1)
हज़ल का शेर :
‘दीवार-ए-‘फेसबुक’ पे जो कुछ मुझे मिला है
जमअ कर कर के यहीं पर फैला रहा हूँ मैं ...
©देवदत्त संगेप©.
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ग़ज़ल का शेर :
दुनिया ने तजुर्बातो-हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
© साहिर लुधियानवी.
(2)
हज़ल का शे’र :
हज़ारों ‘लाईक्स’ ऐसे कि हर 'लाईक' पे दम निकले
‘कॉमेंट्स’ भी मिले बहुत पर गिनती में कम निकले
©देवदत्त संगेप
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ग़ज़ल का शे’र :
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी की, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले...
© मिर्ज़ा ग़ालिब
(3)
हज़ल का शे’र :-
ढूँढ ले कोई जॉब नादाँ रोज़ी-रोटी के वास्ते
सिर्फ़ ‘फेसबुक’ के भरोसे घर-गृहस्थी चलती नहीं
©देवदत्त संगेप
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ग़ज़ल का शे’र :
पाल ले एक रोग़ नादाँ जिंदगी के वास्ते,
सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं
©फ़िराक गोरखपुरी.
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(4)
हज़ल का शे'र :
जालिम छूटी फेसबुक, पर अब भी कभी कभी
आता हूँ फजर से पहले, जाता हूँ ईशा के बाद
©देवदत्त संगेप
*
फजर = प्रातःकाल
ईशा = सूर्यास्त के बाद आधी रात तक का समय
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ग़ज़ल का शे'र :
ग़ालिब छुटी शराब, पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
मिर्जा गालिब
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(5)
हज़ल का शे'र :
'टैगिंग' खुल कर करो, लेकिन ये याद रहे
गर 'ब्लॉक' किये जाओ तो पछतावा न हो
©देवदत्त संगेप
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ग़ज़ल का शे'र :
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों...
- बशीर_बद्र
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(6)
हज़ल का शे’र :-
‘मैं उसकी पोस्ट नहीं पढ़ता वो मेरी पोस्ट नहीं पढ़ता
मगर ऐसी बातों से हमारी दोस्ती में फ़र्क नहीं पड़ता’
©देवदत्त संगेप
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ग़ज़ल का शे’र :-
वह मेरे घर नहीं आता मैं उसके घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
प्रो.वसीम बरेलवी.
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(7)
हज़ल का शे’र :
शौक़-ए-शराब-ओ-फेसबुक अस्ल में दोनों एक हैं
क़ज़ा से पहले इन लतों से कोई बाज़ आएँ क्यों...©देवदत्त संगेप©.
*
ग़ज़ल का शे’र :-
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्जा गालिब
*
(8)
हज़ल का शेर :
सो के उठा हूँ तब से मेरी ‘फेसबुक’ पे नज़र है
आँखों ने मेरी कभी सुबह का अख़बार नहीं देखा ....©देवदत्त संगेप©.
*
ग़ज़ल का शेर :
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
बशीर_बद्र.
*
(9)
हज़ल का शे’र :-
‘लाईक’ नहीं,’कॉमेंट’ नहीं,’फ्रेंड-रिक्वेस्ट’ नहीं
ऐसे ‘फेसबुक’ में हमें कोई ‘इन्टरेस्ट’ नहीं.
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ग़ज़ल का शे’र :-
तुम नहीं, गम नहीं, शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नही
सईद राही.
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(10)
हज़ल का शे’र :-
‘अच्छा-भला' ही आया था मैं ‘फेसबुक’ पे मगर
‘फ्रेंड्स' जुड़ते गए, और मैं बावला बनता गया’
©देवदत्त संगेप
ग़ज़ल का शे’र :-
‘मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’
मजरूह_सुल्तानपुरी.
*
(11)
हज़ल का शे'र :
' ख़ूब 'गठबंधन' है कि मुँह फुला के बैठे हो
साथ निभाते भी नहीं, छोड़कर जाते भी नहीं
©देवदत्त संगेप.
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ग़ज़ल का शे’र :
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं… " दाग़ देहलवी.
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(12)
हज़ल का शे’र :-
‘बाज़ आते न थे ‘फेसबुक’ से और समझते थे कि हाँ
‘स्पोंडिलोसीस’ लायेगी ये हमारी ‘ग्रैंडमस्ती’ एक दिन’
देवदत्त संगेप.
*
‘ग़ज़ल का शे’र :-
‘क़र्ज़ की पीते थे मय और समझते थे कि हाँ
रंग लाएगी ये हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन
मिर्ज़ा ग़ालिब’
(तमाम भुक्तभोगियों को समर्पित)
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(13)
हज़ल’ का शे’र :-
वजीर-ए-पेट्रोलियम हुआ करे कोई
तेल और गैस के दाम कम करे कोई
देवदत्त संगेप
(वजीर-ए-पेट्रोलियम = Minister of Petrolium)
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‘ग़ज़ल’ का शे’र :-
‘इब्ने-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुःख की दवा करे कोई’ .......(मिर्ज़ा ग़ालिब)
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(14)
हज़ल का शे’र
टैक्स सहूलियतों को तेरी, उम्मीद से बढ़कर देखा
मुझे शर्म आ गई, जब ‘इन्कम’ अपना मुख़्तसर देखा .......(देवदत्त संगेप)
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‘ग़ज़ल’ का शे’र :-
तवक्को से तेरे फ़ज्लो करम को बेशतर देखा
मुझे शर्म आ गई जब अपना दामन मुख्तसर देखा ..#सीमाब.
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(15)
हज़ल का शेर :
‘अन-फ्रेंड’ कर तो दिया बड़ी अकड़-ओ-टशन के साथ
मेरे ‘लाईक्स,कॉमेंट्स’ भी लौटाते ‘नोटिफिकेशन’ के साथ’..... (देवदत्त संगेप)
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ग़ज़ल का शे’र :-
तलाक़ दे तो रहे हो इताब ओ कहर के साथ
मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे महर के साथ...
( रेख्ती शायर जनाब साजिद सजनी भोपाली)
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